कैसे न कमली हो जाए
कैसे न कमली हो जाए
जरा रुखसार से हटा दो गेसू रोशनी हो जाए।
सुकूँ मिले बेचैनियों को आराम जिंदगी हो जाए।
भूल जाए ना मुसाफिर भी पलकें झपकाना ,
जानलेवा ना ये मासूम तेरी सादगी हो जाए।
लफ्ज़ रूहानी और ये तेरा रूप रब जैसा,
इश्क सूफियाना यार कैसे न कमली हो जाए।
कूँ -ब-कूँ भटकने से कभी खुदा नहीं मिलता,
पीर समझो गैरों का मुकम्मल बंदगी हो जाए।
दो चिरागां सलामत रहे बस तेरे नैनों के,
अमावस की रात काली चांदनी हो जाए ।
इश्क़ गुनाह 'दीप' माना सजा मंजूर है लेकिन
कैद हो तो उम्र भर के लिए, ना रिहाई हो जाए।