कैसे बाँध लूँ जूड़ा
कैसे बाँध लूँ जूड़ा
संवार लेती बाल, बनाकर जूड़ा
पर एक एक गेसू तर बतर है तुम्हारी साँसों की महक से.....
आगोश में लेकर चूमा जो था उस दिन तुमने ऊँगली से अपनी
एक एक लटें सहलाते।
कैसे बाँध लूँ
उस मन चाही महक को
जिसके दम से महक रहा है कायनात का
ज़र्रा ज़र्रा.......
मेरे बाल झटकते ही
बिखर जाती है जो ज़ाफ़रानी सुगंध
हरसू तुम्हारी साँसों की सुगंध।
देखो कस्तूरी शर्मा रही है
बहक रही है हर शै लड़खड़ाती
कितनी तेज़ है ये महक तुम्हारी साँसों की
मेरी ज़ुल्फ़ो में बसी मुस्कुरा रही है
कहो कैसे बाँधूँ जुड़ा........
मेरे एक एक बाल से टपके रही है
बारिश की बूँद सी तुम्हारी साँसों की खुशबू।
हर कोई कहता है मत बाँधो
छोड़ दो खुले अपने कुंतल
बहकने दो, लेने दो महक.......
तुम्हारे महबूब की साँसों की खुशबू के डेरों से रोशन है चाँद और सूरज
बयार संग मिलकर महकाती है चारों दिशाओं को जो ये खुश्बू.......
ज़िंदा है हर कोई भरकर साँसों में ये सुगंधित सी हवा, तभी तो कहती हूँ
कहो कैसे बाँधूँ मैं जुड़ा।