STORYMIRROR

Suresh Koundal

Abstract Tragedy

4.8  

Suresh Koundal

Abstract Tragedy

कैसा हो गया मेरा देश ?

कैसा हो गया मेरा देश ?

1 min
241



सत्य,अहिंसा अब "शब्द" हैं शेष,

रावण धर बैठे, साधु का वेश।

धर्म जाति के नाम पर लड़ कर,

फैल रहा जन मन में द्वेष ।।

कैसा बन गया मेरा देश ?


लाठी झुक गई, कलम बिक गई,

न्याय व्यवस्था ठप्प पड़ गई,

असहायों की आवाज़ दब गई।

पैसा फेंक, तमाशा देख।

कैसा बन गया मेरा देश ?


बेटियों पर सियासत हो रही,

अस्मत तार तार हो रही,

दंगे, हिंसा, अराजकता फैली,

निकल पड़ी फिर धूर्तों की टोली।

सियार, श्रृंगाल

सब मोमबतीयां जलाकर,

दे रहे शांति सन्देश।

कैसा बन गया मेरा देश ?


चोरी, डकैती या भ्रष्टाचार,

बढ़ रहा है अत्याचार।

असत्य मदमस्त झूम रहा,

करके सत्य का व्यापार।

राम, बुद्ध, नानक का देश,

भूल गए उनके उपदेश।।

कैसा बन गया मेरा देश ?

कैसा बन गया मेरा देश ?



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract