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Aishani Aishani

Abstract Inspirational

4.5  

Aishani Aishani

Abstract Inspirational

क़ैद क्यूँ करें..?

क़ैद क्यूँ करें..?

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मुझे प्रिय आजादी

तो फिर.. 

तुम्हें क़ैद क्यूँ करें...? 

माना तुम कह नहीं सकते

मौन हो सब कहते तो हो

बे-ज़ुबाँ कहते सब तुमको 

पर... 

बे-ज़ुबाँ औ अकर्ण है कौन..? 

दाना पानी ही है पर्याप्त तो नहीं..? 

प्रेम इतना उत्श्रृंखल तो नहीं..! 

ख़ुद तलाश लोगे अपना दाना 

आश्रय तुम्हारा ये क़ैदखाना नहीं

जाओ और भरो इक लम्बी उड़ान

पर तुम्हारे मैंने कतरे अभी नहीं

तुमसे प्रेम है कभी आना इधर भी

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p>अगर थक जाओ डग भरते भरते

मेरी खिड़की खुली तुम्हारे आने की राह तेरी

और तुम... 

तुम अपनों के संग जीने का हुनर सिखा जाना मुझे भी

जाओ पंछी आजादी का अमृत तुम भी तो चखो

कभी किसी शाम आ करके डाल लिया करना इधर भी अपना डेरा

बस इतनी सी इल्तिजा है तुमसे

मेरा निश्छल प्रेम तुम्हें क़ैद से रिहाई देता है

मेरा ज़मीर भी धिक्कारता है अब मुझे तुम्हारे क़ैद को देखकर


मुझे आजादी प्रिय

तो फिर... 

तुम्हें क़ैद क्यूँ रखूँ..?? 



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