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ashant shekhar

Abstract

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ashant shekhar

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कल के सूरज को

कल के सूरज को

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बाकी तो

कुछ रहा नहीं..

यूँही हौसले

समेटकर बैठे है..

के कोई फिर

हमें ना गिरा सके..


कई दफा उठकर

खड़े हुए है हम

के सफर को तो

चलना जरुरी है

ये समझकर चले है हम..!

मंझिल का तो पता नहीं..!


कोई चराग बुझके

भी घने अंधेरे से डरा नहीं..

डूबने के भय से

कश्ती का मन कभी हारा नहीं..


आखरी बार अपने

दिल को टटोल लेता हूँ

मायुस बैठे गुमनाम

उजालो को परख लेता हूँ


शायद किसी की उम्मीद

बाकी रही होगी मुझसे

मैं जिंदा हूँ अभी

कल के सूरज को

आवाज़ लगा के देखता हूँ अभी...!


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