✍️बदल रहा है कुछ कुछ✍️
✍️बदल रहा है कुछ कुछ✍️
तुम्हें कैसे यकीं दिलाऊँ यहाँ बदल रहा है कुछ कुछ
तुम भी बदल गयी हो मुझे आ रहा यकीं कुछ कुछ
बदल रहे चाँद तारे और सूरज, रोशनी में फर्क देखा है
घर के चराग़ तले अँधेरा है छत दिखता है कुछ कुछ
बदल रहे है लिखने वाले हाथ, बेबाक बोलती जुबाँ
आँखों में नफ़रतों के शोले भड़का रहे है कुछ कुछ
आसमान के बादलों में जहरीले मौसम का गुबार है
अमनी फसलों में बारूद बोई जा रही है कुछ कुछ
'अशांत' मस्जिदों की मीनारें अब खामोश हो गयी..
मंदिरों की सरगोशियां हवा में गूँज रही है कुछ कुछ।।
