कातिल
कातिल
कुछ तो खु़दा ने कुछ तेरी अदाओं ने
तुझे खूबसूरत बनाया है,
वो हाल है दीवाने का प्यार में सनम
खंजर लेकर हाथ में आया है,
ना मारो ऐसे धीरे धीरे सनम
आज बस ये कहने आया है।
छोड़ो रोज रोज की तकरार तुम
कर दो खंजर आर पार तुम।
होंगी मेहरबान तो ये दिखती नज़ारे हैं
कहीं पतली कमर तो कहीं नैना कजरारे हैं
क्या दोष है बताओ परवानों का
कुछ तो ख्याल करो अपने दीवानों का
किसे फुरसत है रोज रोज मरने की
बंद करो ये अदा कत्ल करने की
छोड़ो रोज रोज की टकरार तुम
कर दो खंजर आर पार तुम।
होती हैं कितनी जंग बस तुम्हारे लिये
मरते हैं कितने आशिक़ बस तुम्हारे लिए,
कहे कोई का़तिल तो बुरा मानते क्यों हो
कत्ल करने की अदा फिर जानते क्यों हो
करती हैं कत्ल तेरी ये शर्म -ओ-हया भी
क्या बिलकुल नहीं तेरे में दया भी ।
छोड़ो रोज रोज की तकरार तुम
कर दो खंजर आर पार तुम।
मिलता है क्या मजा लोगों को मयखाने में
देखो गौर से जरा इस हुस्नखाने में,
अंग अंग जैसे छलकता हुआ जाम है
जाम जाम पे लिखा पीने वाले का नाम है,
नहीं पिलाना जिसको उसको पिलाती क्यों हो।