गर तुम्हे तुम्हारे देेश से प्
गर तुम्हे तुम्हारे देेश से प्
एक बार चीर के दिखा दो सीना तुम,
एक बार मर के सिखा दो जीना तुम,
भूल रहे हैं लोग अपने फ़र्ज़ को,
भूल रहे हैं लोग दूध के क़र्ज़ को,
ईमानदारी आज क्यों किसी का धर्म नहीं,
आँखों में आज क्यों किसी के शर्म नहीं,
बंद करो मचा ये चारों और जो हाहाकार है,
गर तुम्हें तुम्हारे देश से प्यार है।
एक कुरता, एक टोपी पहन के बन जाता है सिकंदर,
हम जैसे लोगों को फिर समझता है वो बन्दर,
एक एक रूपए के लिये कोई जीवन भर मरता है,
वहीँ कोई बैठ के अपनी जेबें भरता है,
सुख सुकून चैन शांति जो सबका लेता है,
हमारे देश में कहलाता वो नेता है,
बनाओ उसे नेता जो ये सब देने को तैयार है,
गर तुम्हें तुम्हारे देश से प्यार है।
भूल गए हैं लोग भगत, आज़ाद और सुखदेव के बलिदान को,
देश पे कैसे न्योछावर करतें हैं अपनी जान को,
लगे हैं सब लोग धन को कमाने में,
देश की इज़्ज़त को दांव पे लगने में,
बनाया ये कैसा माहौल हमने चारो और है,
हर दूसरा इंसान देख़ो यहाँ रिश्वतखोर है,
ख़तम करो फैला जो ये भ्रष्टाचार है,
गर तुम्हें तुम्हारे देश से प्यार है।
कौन चढ़ाता है मातृभूमि पे अपना रक्त
खेल के मैदान में दिखते हैं यहाँ देशभक्त,
चंद सिक्कों से आज जमीर तौला जाता है,
देख के ये मंजर अब खून खौला जाता है,
सब हैं देश का सर शर्म से झुकाने वाले,
कहाँ गये भारत माता के लियेे शीश कटाने वाले,
अश्क़ नहीं अब लहू आँखों से बहने को तैयार है,
गर तुम्हें तुम्हारे देश से प्यार है।
न होगा कुछ, बात और कविता पाठ करने से,
घर में बैठे वो जो डरते है मरने से,
घर से निकलो तुम अब बाँध के कफ़न,
इच्छाओं को कर दो तुम आज अपनी दफ़न,
देश को सुधारना है बस इतना ठान लो,
न करेंगे गलत न करने देंगे बस इतनी जबान दो,
चारों और तुम्हारी फिर जय जयकार है,
गर तुम्हें तुम्हारे देश से प्यार है।
