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Arvind Saxena

Others

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Arvind Saxena

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कौन जाने कब कहाँ सब खत्म हो जा

कौन जाने कब कहाँ सब खत्म हो जा

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जी लो जिंदगी जितनी है उससे ज्यादा

कर लो पूरा गर किया है किसी से वादा

मिलो ऐसे जैसे कल बिछुड़ जाना है

जाने वाले को कहाँ फिर लौट कर आना है।


चलते चलते कब शाम हो जाए

कौन जाने कब कहाँ सब खत्म हो जाए।


जो है आज जरूरी नहीं कल हो

हर वक़्त ख़ुशी का ही पल हो,

कहते तो सब हैं तुम्हारे साथ हैं

देर नहीं लगती जब छूटते हाथ हैं।


कब कौन सी मुलाकात आखिरी हो जाए

कौन जाने कब कहाँ सब खत्म हो जाए।


चाहते हैं जो हम कहाँ पूरा होता है

देखते हैं जो सपना अधूरा होता है

वो जो कल तुम्हारे पास था अपना था

आज सोचोगे तो लगेगा शायद सपना था।


कब कौन कैसे जुदा हो जाये

कौन जाने कब कहाँ सब खत्म हो जाए।


चारों तरफ यहाँ बड़ा ही अंधेर है

इंसान को बदलने में नहीं लगती देर है

बदलने से पहले गले से लगा लो

सोये हुए अरमानों को जगा लो।


कब सारे अरमान चकनाचूर हो जाएं

कौन जाने कब कहाँ सब खत्म हो जाए।


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