चली आती हो
चली आती हो
खिलखिलाती धूप में
बरसात सी चली आती हो,
तुम दिन के उजाले में
चांदनी रात सी चली आती हो
मेरे दिल के वीरान पड़ी
सड़कों पे,
तुम गाती बजाती बारात सी
चली आती हो,
अंधेरों में झिलमिल सितारों सी
चली अती हो
तुम पतझड़ में बहारों सी
चली आती हो,
होने ही नहीं देती मुझे कभी तन्हा
तुम सजे हुए बाज़ारों सी
चली आती हो,
रात मे पुरानी याद सी
चली आती हो,
तुम हर दुआ में फरियाद सी
चली आती हो,
लिखता हूं जब भी कुछ नया,
तुम हर शेर पे दाद सी चली
आती हो,
होली पे अबीर और गुलाल सी
चली आती हो,
दीवाली वे दीपों का थाल सी
चली आती हो,
मनाता हूँ रोज़ त्योहार अब मैं,
तुम हर दिन नए साल सी
चली आती हो…।

