काश - तुम होते
काश - तुम होते
काश में इतनी कश्मकश क्यूँ हैं.!
ये काश क्यूँ है -इसका ज़वाब तो नही
फ़िर भी ये काश ज़िंदगी है हमारी
काश ही तो है जो हमारे अधूरे ख़्वाब को
ख़्वाब में ही पूरा करती है
ये काश ही है जो भीड़ में भी अक़ेले
और अक़ेले में भी पूर्ण होने का अहसास कराती है
काश झूँठ का भँवर है .।
या सच का सामना न पाने का बहना ..
क़भी ख़ुद से मिलने नही देता न
ख़ुद को ख़ुद दूर होने देता है !
काश तुम होते प्रियवर .!
तो अपनी आग़ोश में बिठाकर
उलझन को सुलझा तो देते
काश तुम होते ..!