काश नजरियों के होते चश्में
काश नजरियों के होते चश्में
हर आँख का अलग है चश्मा,
हर आँख की नजर अलग,
हर नजर की वजह अलग,
हर वजह का अलग है चश्मा।
किसी को दिखता दूर का कम,
कोई को दिखता पास का कम,
पास का भी अलग है होता,
दूर का भी है अलग हरदम।
चश्मों की है अजब कहानी,
इनके हुनर का ना कोई सानी,
ना चलती इनके आगे मनमानी,
गलत चश्मे बुलाते परेशानी।
हर एक का है चश्मा जुदा,
चश्में अलग पर नजरिया तयशुदा,
सोचें अलग है कुछ उनका खुदा,
है एक ही रब पर नजरिया जुदा।
काश नजरिए हो सकते बस में,
जूतों जैसे ही रखते बांध के तस्में,
सुनते फिर बस अमन की नज्में,
गर नजरियों के भी होते चश्में।
