STORYMIRROR

Dr Priyank Prakhar

Abstract Inspirational

3  

Dr Priyank Prakhar

Abstract Inspirational

काश नजरियों के होते चश्में

काश नजरियों के होते चश्में

1 min
46

हर आँख का अलग है चश्मा, 

हर आँख की नजर अलग,

हर नजर की वजह अलग, 

हर वजह का अलग है चश्मा।


किसी को दिखता दूर का कम,

कोई को दिखता पास का कम,

पास का भी अलग है होता,

दूर का भी है अलग हरदम।


चश्मों की है अजब कहानी,

इनके हुनर का ना कोई सानी,

ना चलती इनके आगे मनमानी,

गलत चश्मे बुलाते परेशानी।


हर एक का है चश्मा जुदा,

चश्में अलग पर नजरिया तयशुदा,

सोचें अलग है कुछ उनका खुदा,

है एक ही रब पर नजरिया जुदा।


काश नजरिए हो सकते बस में,

जूतों जैसे ही रखते बांध के तस्में,

सुनते फिर बस अमन की नज्में,

गर नजरियों के भी होते चश्में।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract