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Govardhan Lal

Abstract

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Govardhan Lal

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काश! मैं देर तक सो पाता

काश! मैं देर तक सो पाता

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203


सो जा मुसाफिर

नया साल का पहला दिन है।

साल भर से जाग रहा, 

आंखो को थका रहा।

आज साल का पहला दिन है,

जी भर के सो जा।

आज जो तु जाग गया,

साल भर सो नहीं पाएगा।

ये जो पलकें हैं, इनको भी पलकों पर कभी बिठाया कर,

थक कर कभी तो तु चुर हो जाया कर। 


साल का नया दिन है।

फिर भी चैराहे पर सब मित्र

तगारी फावड़ा लेकर क्यों आ गए।

हां इसलिए अभी तक मेरे चैराहे की भीड़ कम नहीं हो पाई है

किसी को नया साल के दिन से दूसरे काम की याद नहीं आई है


‘‘काश मैं आज देर तक सोता रहता‘‘

निंद में भी फावड़ा चलता रहता है

आज काम मिलेगा क्या यही याद आता रहता है

मुझे पता ही नहीं चलता

किस दिन कौन सा दिन है ? 


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