काश! ऐसा इतिहास रचे
काश! ऐसा इतिहास रचे
काश ऐसा इतिहास रचे कि जिसमें,
न कोई लड़ाई न कहीं झगड़ा हो।
हर तरफ आपस में सबका,
बस केवल ही प्यार हो।
न जात-पात का भेद हो जिसमें,
न नफरत की दीवार हो।
इक दूजे का हो साथ सबको,
मिलकर चलने को हरकोई तैयार हो।
लालच से हर कोई दूर हो जिसमें,
सब के मन में संतोष का भाव हो।
भ्रष्टाचार का तो भूले से भी,
कहीं कोई नामोनिशान न हो
देशप्रेम हो सब के मन में जिसमें,
और सच्चाई की ज्योति हो।
कोई मुश्किल न हो जीवन में,
हर तरफ बस शाँति हो।
घर में बड़ों का मान हो जिसमें,
न उनका कभी अपमान हो।
घर के बाहर नारी जाति की,
अस्मत पे कोई वार न हो।
रिश्तों की मर्यादा हो जिसमें,
न परिवार में कोई तकरार हो।
न द्वेष, क्लेश हो किसी घर में,
न किसी बीमारी का राज हो।
हरकोई अपनी सीमा में खुश हो जिसमें,
कहीं कोई घुसपैठी न हो।
न कहीं आंतकवाद हो,
न सीमा पे कोई जवान कुर्बान हो।
हर तरफ हरियाली हो जिसमें,
और आबाद हर किसान हो।
नदियाँ, झरने, पर्वत और वृक्षों से,
प्रकृति के सौंदर्य का निखार हो।
हर कोई कर्तव्यनिष्ठ हो जिसमें,
और हर किसी को रोज़गार प्राप्त हो।
कोई भी भूखा न हो,
हर किसी के सिर पे छत का साया हो।
हर जगह पर धर्म हो जिसमें,
और हर जगह ईमान हो।
धर्म जाति के नाम पर कभी,
कोई दंगा फसाद न हो।
हर किसी के मन में जिसमें,
एक दूजे के लिए सम्मान हो।
बेकार की बहस में उलझकर,
सार्वजनिक सम्पति का नुकसान न हो।
अपनी संस्कृति व सभ्यता का गुणगान हो जिसमें ,
और अपनी भाषाओं में बोलचाल हो।
अपनी वेशभूषाओं का इस्तेमाल हो,
और अपने रीति रस्मों पे अभिमान हो।
पशु पक्षियों की रक्षा हो जिसमें,
न उनका कत्लेआम हो।
अपने निजी स्वार्थ के लिए,
न उनका कोई व्यापार हो।
मेरे भारत का हर कहीं मान हो जिसमें,
और हर जगह मेरे भारत का नाम हो।
माँ सरस्वती का वरदान हो सभी को,
और मेरे भारत की ऊँची शान हो।
काश ऐसा इतिहास रचे कि जिसके,
एक एक पन्ने पर,
मेरे ऐसे भारत का नाम,
स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो।
ऐसा इतिहास जिसके हरएक पन्ने पे,
विश्वशाँति और आपसी बँधुत्व के किस्से,
स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हों,
स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हों।