काश ! ऐसा होता
काश ! ऐसा होता
काश! ऐसा होता
कोई सरे राह पेट के लिए भीख ना मांगता
मजबूर यूं हो भूखा ना सोता
ना बच्चे बिलखते दूध के लिए
ना जिस्म का सौदा मां का होता।
काश! ऐसा होता
नेता जनता का खादिम होता
जन भाव से खूब सेवा करता
दिन रात लगा रहता देश हित मे
भ्रष्टाचार से मीलों दूर होता।
काश! ऐसा होता
ना शहर जलते बात बात पर
ना द्वेष वैमनस्य का राग होता
बांटते सुख दुख इस सभ्य समाज में
हर ओर प्रेम शांति का भाव होता।
काश! ऐसा होता
दिल बड़ा अमीरों का होता
लोभ मोह त्याग कर अपना
खोल तिजोरी धन दौलत की
गरीबों की रोटियों का प्रबंध होता।
काश! ऐसा होता
ना भुखमरी लाचारी होती
ना लोगों पर यूं आफत होती
ना कोई बेमौत बिन पैसे मरता
ना बीमारियों का जाल बिछा होता।
काश! ऐसा होता
ना अकाल ना भूचाल होता
ना हर ओर बाढ़ का सैलाब होता
ना विस्थापन लोगों का बार बार होता
ना परेशानियों का जंजाल होता।
काश! ऐसा होता
ना सीमा पर बेवजह गोलियां चलती
ना सैनिकों की छातियां लहू लूहान होती
ना किसी मां का बेटा मरता
ना किसी बहन का सुहाग उजड़ता।
काश! ऐसा होता
ना लड़का लड़की मे भेद होता
ना सरे राह बेटियों का रेप होता
ना कमतर उन्हें यूं आंका जाता
देह नहीं उन्हें सिर्फ इंसान माना जाता।
काश! ऐसा होता
सबको मिलता अवसर बढ़ने का
जाति लिंग का भेदभाव ना होता
रूढ़ियों कुरीतियों का इस वर्तमान में
अब कहीं कोई ठौर ठिकाना ना होता।
काश! ऐसा होता
ना इंसान प्रकृति से खिलवाड़ करता
ना मनमर्जी से अपने नियम रचता
ना रोकता नदियों को बांधों में हरदम
ना विनाश का वो कारण बनता।
काश! ऐसा होता
इंसानियत का परचम लहरा कर
इंसान इंसान ही होता
चारों ओर प्यार बांटता
पथ पर सत्य के हरदम चलता
काश! ऐसा होता..........।।।।