कांपती हथेलियाँ
कांपती हथेलियाँ
कुछ सुन्दर सपने व कुछ मासूम उम्मीदें ,
अपने जीवनसाथी से सबके ही होते हैं !
शादी के बाद पत्नी हूर की परी लगती है ,
तो पति भी पत्नी को बेहद अच्छे लगते हैं !
पर धीरे धीरे दोनों चिड़चिड़े होते जाते हैं ,
एक दूसरे से दूर और दूर होते चले जाते हैं !
पति और पैसे कमाने की धुन में लग जाते हैं,
पत्नी के पैर बच्चों के पीछे नाचने लग जाते हैं !
ज़िम्मेदारियों के तले दोनों डूबते चले जाते हैं,
और फिर एक दूसरे को कहाँ प्यार कर पाते हैं !
फिर जैसे जैसे उनके बच्चे बड़े होते जाते हैं ,
आशियाना छोड़कर फुर्र उड़कर चले जाते हैं !
जीवनचक्र के अधीन परिश्रम करते रह जाते हैं,
माता-पिता कभी खुद के लिए कहाँ जी पाते हैं!
अक्सर उन बूढ़ी आँखों के सपने अधूरे ही रह जाते हैं !
ज़ब बच्चे त्योहारों पर भी मिलने आ नहीं पाते हैं !
जीवन के उत्तराध में ज़ब सिर्फ वो दोनों ही रह जाते हैं,
तब एक दूसरे की झूर्रीदार हथेलियों को थाम लेते हैं।
