कान्हा
कान्हा
कान्हा बतिया बनावत कोरी
कुछ भी कहो सुनत नहीं मोरी
लाख करूँ मैं मिन्नते उनसे
मौका देख के करत बरजोरी
पनघट पर पनियां भरत है गोरी
सब अब जमघट लगाये छोरी
गोपियाँ संग रास रचे लुक छिप
कान्हा देखो करत मनवा चोरी
मन से मिल जाये मन की डोरी
हम तो ह्रदय में छुपे है अब तोरी
मैया सुनाय कान्हा को मीठी लोरी
आओ खेलें हम मिल रंगो की होरी।
