काग़ज़
काग़ज़
लकड़ी, घास, बाँस के चीथड़े,
से बना हुआ मैं काग़ज़ हूँ।
क्या बतलाऊँ, कितने पेड़, पौधों की,
आत्मा की आवाज़ हूँ।
क्या क्या नहीं छपता मुझमें,
अख़बार, किताबें, लिफ़ाफ़े, तस्वीरें।
रद्दी चीज़ें, फटे पुराने, कपड़े भी,
मिलकर आए मेरे काम में।