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अनजान रसिक

Inspirational

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अनजान रसिक

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जय माता दी

जय माता दी

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एक सुबह शीतल पवन की लहरों के बीच निकले जो हम शाकुंभरी माता के दर्शन के प्रयोजन से


,प्रसन्नचित्त तो थे सभी पहले से ही,हर्षोल्लास से भर गया मन ,मौसम का सुहावना मिज़ाज देख के।


अपितु ग्रीष्म ऋतु थी तथापी शीतल पवन चल रही थी उस रोज़ चहुं ओर ,


गुलाबों की भीनी-भीनी महक ने मनोहारी कर दिया था वातावरण हर ओर।


बाधाएँ सभी स्वतः ही मिट गई थीं क्योंकि माता ने दर्शन देने अपने भक्तों को बुलाया था दर पर,


अतः चल दिए हम मतवाले भक्त, अपनी मस्ती और धुन में लीन होकर।


तन्मयता से जोशीले स्वर में मिलकर जयकारे लगाते कभी तो कभी करते माँ जगदम्बे से गुहार,


उस सर्वव्यापी शक्ति के दर्शन पा कर हो जाये उद्धार , यही थी सबकी दिल से दरकार ।


कतारों में लग कर , नंगे पैरों चल कर सबने किया अपरंपार महिमा व अविस्मरणीय शक्ति वाली शाकुंभरी माता का साक्षात दर्शन ,


भिन्न-भिन्न रूपों में दुष्टों का संहार कर कल्याण करने वाली जग-जननी को सप्रेम चढ़ाया पान, सुपारी ध्वजा नारियल। 


आगे चले तो मन घर को लौट जाने का नहीं हुआ इतनी जल्दी,


अतः गंगा मैय्या के दर्शन करने हेतु हरिद्वार की ओर चल पड़ी हम मतवालों की टोली।


गंगा माता की शीतलता और अपरंपार महिमा मन को प्रफुल्लित कर गयी फिर एक बार ,


सबने नतमस्तक हो कर पूर्ण श्रद्धा से किया माँ गंगे को प्रणाम । 


चढ़ा के एक आम के पत्ते पर सुसज्जित नारियल और जगमगाता दीपक,माँगी अपने सभी दोषों के लिए क्षमा याचना ,


सबका जीवन खुशियों और समृद्धि से भर जाए ,ऐसी की सच्चे हृदय से माँ गंगे से प्रार्थना।


हमारी इस अद्भुत यात्रा का अंत यहीं तक सीमित होना शायद ना लिखा था ,


इसलिए ट्रौली में विराजमान होकर रुख कर लिया अब हमने माँ चंडी देवी के मंदिर की ओर का ।


रंगीला चोला है जिस माँ का ,चंवर कुबेर ढुलाए जिस आदि शक्ति भवानी को ,


चरणों में जिसके बहती गंगा धारा, शीतल कर दिया उस जग-जननी के सुमिरन ने सभी के ह्रदय को। जय माता दी जय माता दी बोलते नंगे-नंगे पैरों से चलते चले कतारों में हम सभी ,


जगदम्बे की एक झलक ने मिटा दी सारी थकान, भर गए पैरों में पड़े छाले और घाव स्वतः ही ।


लाल ध्वजा और जगमग ज्योति से सुस्सजित माँ के मनोहर दरबार ने जादू करा ऐसा मन पर सबके,


मन रम गया सभी का उस प्रांगण में और घर लौट आने का विचार ही रफ़ूचककर हो गया मन से। 


झूमते नाचते ,माँ के भजन और गीत गाते लौट आए आवास को अंततः,


माँ के दर्शन पा कर सभी का दिन और जीवन सफल हो गया ।


घंटों की घनघन, पायल की छनछन अंतर्मन में सभी के बस गयी ,


मन में इच्छा बस यही उमड़ी कि बारंबार बुलाकर दर पर अपने,यूं ही कृपा बरसाती रहे अम्बे रानी ।


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