Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Sheela Sharma

Abstract

3  

Sheela Sharma

Abstract

जुस्तजू

जुस्तजू

1 min
431


जिन्दगी में कोई चुभन सी है

जिन्दगानी में कुछ कमी सी है

कायनाथ में कैसी तीरगी है

तमन्ना क्यों बुझी सी है

ख्याल अन्दर जो बसाया

जनाजा है हर गुजरते क्षण का

मंजिलो की तलाश सर्वत्र

सघन संसाधनों के बावजूद कमी सी है

हर शै की शुरुआत ही ख्वाब

ढेरों दफन वक्त के ताबूत में

होते साकार पर वक्त के मोहताज

फैले ब्रह्माण्ड में 

बीता वक्त कभी न लौटता

मिटकर स्वप्न बुनने को तैयार रहता

अल्हण मन नहीं समझता ये धूप छाँव

भ्रम में जुड़ता तो कभी टूटता

स्वप्न में मत उलझ दृष्टा बन ,सृष्टि से

हो मुक्त मन को ,सृष्टा कर

न जन्म लेती न नष्ट होती अखण्ड से खण्ड

फिर खण्ड से अखण्ड कर

रव्याल कभी द्रुत मन्द कभी स्पष्ट से

अस्पष्ट ,नक्शे रेत जैसे

रहता चमन मे बहार का आलम

कभी बदलती रंगत फिजा जैसे

कारवां से बिछड़ गये ,हम चले राह अजनबी 

जुनून की ,सुकून की ,यकीन की कर जुस्तजू



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract