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सोनी गुप्ता

Abstract Inspirational

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सोनी गुप्ता

Abstract Inspirational

जरा सी रोशनी

जरा सी रोशनी

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चारों ओर जैसे घोर अंधकार सा छाया था ,

जाने कहाँ से जीवन में ये तिमिर आया था ,

लग रहा था जीवन जैसे मेरा व्यापार हो गया ,

जो लगते अपने वो भी मौत का यार हो गया ,

दिन बीतता और फिर वही अंधकार छा गया I


हाय जीवन में आज ये कैसा सवाल आ गया ,

जरा सी रोशनी के लिए मन छ्टपटा रहा था ,

परख न पाये अपना पराया दिल घबरा रहा था

बीत रहा जीवन पीड़ा में चेहरे पर उदासी छाई है

उदास चेहरे पर खुशी का मुखौटा लगा रहा था I


जीवन ने तो उम्मीद का दामन छोड़ ही दिया ,

हर लम्हा जरा सी रोशनी के लिए तरस रहा था ,

सुख की परिभाषा आज दुख में तब्दील हो गई ,

बहता नीर नयन का अब नहीं थम रहा था

चारों ओर जैसे घोर अंधकार सा छाया था ,

जाने कहाँ से जीवन में ये तिमिर आया था I



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