जरा सी रोशनी
जरा सी रोशनी


चारों ओर जैसे घोर अंधकार सा छाया था ,
जाने कहाँ से जीवन में ये तिमिर आया था ,
लग रहा था जीवन जैसे मेरा व्यापार हो गया ,
जो लगते अपने वो भी मौत का यार हो गया ,
दिन बीतता और फिर वही अंधकार छा गया I
हाय जीवन में आज ये कैसा सवाल आ गया ,
जरा सी रोशनी के लिए मन छ्टपटा रहा था ,
परख न पाये अपना पराया दिल घबरा रहा था
बीत रहा जीवन पीड़ा में चेहरे पर उदासी छाई है
उदास चेहरे पर खुशी का मुखौटा लगा रहा था I
जीवन ने तो उम्मीद का दामन छोड़ ही दिया ,
हर लम्हा जरा सी रोशनी के लिए तरस रहा था ,
सुख की परिभाषा आज दुख में तब्दील हो गई ,
बहता नीर नयन का अब नहीं थम रहा था
चारों ओर जैसे घोर अंधकार सा छाया था ,
जाने कहाँ से जीवन में ये तिमिर आया था I