जो वह लम्हें थे
जो वह लम्हें थे
यह जीवन क्या है
लम्हा दर लम्हा
आहिस्ता आहिस्ता सरकती
एक दास्तान
एक लम्हा ऐसा भी आता है
जब जो लोग होते हैं
दिल के बेहद करीब
उनका साथ छूट जाता है
ऐसा महसूस होता है कि
दिल अब कभी धड़क ही नहीं
पायेगा
जीवन तो एक सफर सा आगे
बढ़ता रहेगा पर
कोई लम्हा खुशी का अब कभी
एक मुसाफिर सा
राह चलते
मुझसे कभी मिल नहीं पायेगा
लेकिन अब तक का सफर तो
बहुत सुखद रहा
इसके पीछे का मुख्य कारण यह है कि
मेरे साथ जो लोग अब तक थे
उनका मुझे निरंतर सहयोग मिला
उनसे प्रेम मिला
अपनापन मिला
वह जो रिश्ता था
उसमें स्थायित्व था
वह एक सफर नहीं
किसी सफर का
एक सुखद मोड़ था
पडा़व था
जहां से आगे जाने की इच्छा ही
नहीं होती थी
एक मंदिर में
भगवान के समीप बैठकर
जिस आनंद की प्राप्ति होती है
ठीक वैसी मानसिक शांति मिलती थी
लेकिन जो चाहो
जैसा चाहो
हमेशा वैसा तो नहीं होता
सब कुछ बदलता भी तो रहता है
जो वह लम्हें थे
अब वह दृश्य स्वप्न में भी कहां
उपलब्ध होते हैं लेकिन
उन रिश्तों की डोर इतनी मजबूत थी
उनकी वाणी, व्यवहार और स्पर्श में इतनी मिठास
और ताकत थी कि
अब आगे के सफर में
रेगिस्तान भी मिला ना
पीने को जल
खाने को कोई फल भी न
मिला जो तो
कोई गिला नहीं
मेरी आत्मा तृप्त है
किसी का स्नेह बरसाती
वर्षा से
अनगिनत खुशगवार लम्हें जिये हैं
मैंने प्रेम के
प्रेम का अब अभाव होते हुए भी
प्रेम का, एक प्रेम के लम्हें बरसाता सागर हूं मैं
प्रेम का मुझ में अभाव नहीं।
