जो सोचते थे
जो सोचते थे
जो सोचते थे, ख़ुदा की
इबादत से मुसीबत,
कम हो जायेगी।
क्या पता उन्हें, ख़ुदा के
बंदों से परीक्षा, ली जाती है।।
मंज़िलें उन्हें भी, मिला करतीं हैं
जो कछुए के, मानिंद चलते हैं।
चलने का नाम, है जिंदगी
थमने से दूरियाँ, बढ़ जाती हैं।।
सफर जारी रहने से, कठिनाइयाँ
रुकावटें आती रहेंगी।
भरोसा रख ख़ुदा पर, नेकी की
राह मंज़िल तक, ले जाती है। ।
समन्दर की लहरें, कितनी
भी खौफनाक, ऊंची उठे।
किनारों से बाद, टकराने के
लौट सागर में, वे गुम हो जाती है। ।
चलने की शुरुआत, तो करो
रास्ते मंज़िलें, भी मिल ही जायेंगे।
तू इंसा है, रूकना है मना 'मधुर '
जिंदगी इक, मिसाल बन जाती है। ।