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Navni Chauhan

Inspirational Others

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Navni Chauhan

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जो मैं होती नाविक

जो मैं होती नाविक

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जो मैं होती नाविक,

किसी कश्ती की,

रास्ता तय करती,

हिचकोले खाती,

डगमगाती नाव का,

पर फिर भी

लहरों को चीर पार होती।

घबराती कभी 

जो मझधार में,

जब तड़ित कौंधती मुठ्ठियां भींच,

भृकुटी सिकोड़ मुझे चेताती भी,

पर फिर भी,

साहस दिल में भरकर,

नज़र रखती साहिल की।

जो मैं होती नाविक.......।


जो माझी न मिलता,

चलना कैसे छोड़ती,

आंखों में मूंदे सपनों को,

तिलांजलि कैसे देती।

कैसे समझाती दिल को,

सपनों की मौत का सबब,

कैसे जी लेती ज़िंदगी,

बाकी अफसोस की।


तूफ़ान आता,

तब भी न रुकती।

हार को गले लगा,

खुद से,

नजरें कैसे मिलाती।

जो मैं होती नाविक,

तो पग पग श्रम से बढ़ती,

होता कैसा भी अंबर

कश्ती साहिल पे लाती।


हां, मैं हूं नाविक, 

इस जीवन के सफर की,

मज़ा जरूर लूंगी,

साहिल की धूप की।

कल जब दर्पण में प्रतिबिंब पाऊंगी,

फक्र से, खुद से नज़रें मिला पाऊंगी।


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