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Snehil Thakur

Romance

4.0  

Snehil Thakur

Romance

'जो हो रहा है'

'जो हो रहा है'

1 min
240


जो हो रहा है, तुम्हारी 

नशीली आंखों की गलती है, 

कसूरवार हैं ये मेरे, खींचती हैं

तुम्हारी ओर, जैसे चांद सागर को 

अपनी ओर आकर्षित करता है,

तुम्हारी मासूम नज़रों में झांक 

उनकी गहराई की कल्पना

कर मचल उठी मैं, मानो बिन 

स्पर्ष इनके गिरफ्त आ गई हूं,

ये मुझे उन अधूरे ख़्वाबों से 

मिलाती हैं, जिन्हें तुमनें सदियों से

क़ैद कर रखा है, वहीं कहीं

मेरा वक़्त भी ‌जैसे थम गया हो,

ठहर गया हो, मेरी पलकों पर 

बांट जोहे खड़ा हो, उसी पल

अनिश्चित, यायावर सी मैं,

अपेक्षित तेरी‌ निगाहें की 

रिमझिम फुहारों में साशय

डूबती चली जाऊं मैं।


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