ये इज़हार-ए-इश्क़!!!
ये इज़हार-ए-इश्क़!!!
हुस्न-ए-बला है ही तुम्हारा कुछ ऐसा,
जिसका बखान कर ही नहीं पाए थे 'हायल'!!!
तबस्सुम की रौशनी भी छितरा सी जाए,
जब छनकाओ तुम अपनी ये पायल!!!
महफ़िल-ए-तरन्नुम में अलफ़ाज़ जो तुमने दागे कुछ तरह,
जज़्बात-ऐ-बयाँ के हम भी हो गए कायल!!!
इज़हार-ए-इश्क़ का अंदाज़ था ही बेहद कातिलाना,
की करता सा चला गया हमें बेइन्तहाशा घायल, बेइन्तहाशा घायल!!!

