कौन कहता है
कौन कहता है
मोहब्बत मुक़म्मल है कौन कहता है
हर सजदा इबादत है कौन कहता है
लायक नहीं समझा हमें और बात है
मसला बग़ैर हल है कौन कहता है
ग़म ख़ुशी हर साँस में अक़्स है उसका
किसी और का पर है वो कौन कहता है
कभी जायज़ा लेना मेरी ख़ामोशियों का भी
सब बातों से बयाँ हो जाए कौन कहता है
जलाए रखो या बुझा देना मर्ज़ी तुम्हारी है
दिए की फ़ितरत बदल जाए कौन कहता है
जो धुन पे आ गई कर गुज़र ही जाते हैं
दीवाने संजीदा होते हैं कौन कहता है
कितने जज़्बातों की रूहानी तस्वीर होती है
ये शायर सूरत पे मरते हैं कौन कहता है।

