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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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जो है, वो तो है

जो है, वो तो है

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जो है वो तो है

कुछ अच्छा, कुछ अच्छा नहीं

कुछ प्रिय, कुछ अप्रिय

कुछ अपना, कुछ अपना नहीं

कुछ सरल कुछ सरल नहीं

कुछ मानवीय कुछ मानवीय नहीं

जो है वो तो है

जैसा भी है, है

तो जो है उसका आनन्द लें

जो नहीं है उसका क्या चक्कर है

जो होना चाहिये वो बोलिये

क्योंकि अक्सर आप की नापसंदगी में

आप की पसंद गुम हो जाती है।


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