जनाजे
जनाजे
आस-पास के मकान में काफी
जनाजे पसरे है
देखो तो जानो कितने अपनों के
मंज़िल निकले है
अरे ! आज के आज ही क़यामत
आने वाली है
सभी निकले मंज़िलों से हिसाब
होने वाला है
ख़ुदा बैठा है वहां सब का चिट्ठा लेकर,
जहां सभी का जिस्म मिट्टी होने वाला है !
लेकिन वहां भी उसी को बख्शा जाएगा,
जो कबीर-सा अपने पूरे जीवनकाल में,
बेहिचक कुरीतियों तथा शोषण से
लड़ा होगा !
औऱ उसकी मंज़िल जब उठी होगी तब
सब रोये होंगे
ख़ुदा उसके रूह से मिलते ही उससे
लिपट गया होगा,
जब उस ख़ुदा के जन्नत को भी वह
ठुकरा दिया होगा !
आस-पास के मकान में काफी जनाजे
पसरे हैं..!
कुछ जनाजे मसान की तरफ भी गए थे
जहाँ वे चिताओं में जलकर राख हो गए थे
लेकिन महाकाल ने भस्म उसी चिता से
उठाया
जो कबीर-सा मंदिर-मस्जिद से दूर था
अपने पूरे जीवनकाल में वंचितों का
मसीहा था
उस भस्म को महाकाल ने जब,
अपने शरीर- मस्तक पर लगाया
कई चिताओं के राख ने उनसे प्रश्न कर
डाला,
आखिर आपने हमें क्यों नहीं उठाया ??
महाकाल का उत्तर था-
तुम सब नहीं थे मेरे सच्चे सेवक !
जिस उद्देश्य के लिए तुम्हें मनुष्य बनाया था,
उस उद्देश्य को छोड़ बाकी,
अनैतिकता तुमने कर डाला था !
मैं सृष्टि के लिए विष पीकर नीलकंठ हो गया,
पर, तुम सबों ने जाति-धर्म का विष फिर
फैला दिया !
मैं किसी मंदिर-मस्जिद में रहने वाला देव
नहीं हूं,
मैं हरेक धर्म के शोषित ग़रीब वर्ग में वास
करता हूं !
मैं जिस भस्म को संपूर्ण शरीर में लगाया हूं,
वह शोषित ग़रीब वर्ग का पुजारी था
और तुम सब उस मंदिर के लुटेरे थे
इतना बोलते-बोलते ही गंभीर मुद्रा में,
महाकाल ने उनसे कहा, देखो तुम लोगों-सा
आस-पास के मकान में काफी जनाजे पसरे हैं..!!