जमाना जानता है
जमाना जानता है
शाम हो रही है, अंधेरा छा रहा है I
लालिमा अंबर की,पंछी जा रहा है।
कल की सुबह जाने क्या ठानता है।
बदल गये युग पल में जमाना जानता है।
मानव कुनबे की राज और रणनीति।
उथल-पुथल इधर भी ये,है उधर भी।
समंदर की लहरें टकराव ही लानता है।
बदल गये युग पल में जमाना जानता है।
मौन है मानवता मानव पीड़ा देख कर।
तृप्त हैं उनकी अंगेठी मे रोटी सेंक कर।
अवसर ये फायदे का है वो ये मानता है ।
बदल गये युग पल में जमाना जानता है।