जलती रही मशाल
जलती रही मशाल
जलती रही मशाल
तपते रहे देश के लाल
खून में था कुछ ऐसा उबाल
कि धराशायी हो गए विकराल।
संग उम्मीद थी और हौसले थे
गुलामी और आज़ादी के बीच
मीलों के फासले थे
कुरबानियों का कारवाँ थमा नहीं
चल पड़े कुछ ऐसे सिलसिले थे।
देश भक्तों ने बनाया, देश भक्तों का हुजूम
खून के कतरों में भी था तरन्नुम
आजादी के लिए कई परवान चढ़े
कई हो गए गुम।
सामने आजादी थी, हम आजाद थे
जीत गए उस्तादों के उस्ताद थे
गड़े कदम अंग्रेजों के उखड़ गए
हार के सब छोड़ के अपने घर गए।
आजादी मिली है तो मिल कर सम्भाले हम
आज़ादी का जश्न मना लें हम।
बंदे मातरम भारत माता की जय।