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Sachhidanand Maurya

Abstract Inspirational

4  

Sachhidanand Maurya

Abstract Inspirational

जल प्रकृति और पर्यावरण

जल प्रकृति और पर्यावरण

2 mins
404


(१)


जल प्रकृति और पर्यावरण

कुदरत की चीज अनोखी तीन

पहले की कीमत इतनी प्यारे

तड़पे जो बिन इसके मीन।


(२)


देखो मुझे इस तरह

न बहाओ नही तो

तुम्हारे आँसुओं के लिए

भी न बचूंगा।

फिर खोदते रहना

फिर भी ऊपर न चढूँगा।


(३)

देखो मुझे इतना

गन्दा न करो

गंगा की निर्मल

धारा के समान

रहने दो

कचरों में मैं

रोज नहाता हूँ

मैं तुम्हारा हिस्सा हूँ

खुद का तो मान

रहने दो।



(४)


परिश्रम करते हो

तब कहीं मुझे

पाते हो

एक कुंआ पहाड़ों में

खोदने में कितना

मेहनत

लगाते हो

मुझे प्रबंधित क्यों नही

करते बरसात में

फिर गर्मी में त्राहि माम्

त्राहि माम्

क्यों मचाते हो।



(५)


कभी प्यासे का भी

ख्याल रखो

पुण्य मिलता है

जानते तो हो ही

मेरी कीमत अब

पेट्रोल से भी ज्यादा है

इस बात को

मानते तो हो ही।



(६)


देखो मुझसे

तुम्हे ऑक्सिजन

मिलता है

बूंदों में बरसात के

बूंदों में जाड़े के

गर्मी में तो मानो तुम्हे

जीवन मिलता है।





(७)


जल और पर्यावरण

का समन्वित रुप हूँ

गर्मी में शीतल छांव

जाड़े की नर्म धूप हूँ।



(८)


प्रकृति क्या है

देखा जाए तो

जल पर आसक्त है

हर जीव जंतु का

हर पेड़ पौधों का

जल ही बहता हुआ रक्त है।



(९)


मगर प्रकृति भी

निश्चित रूप से

जल-स्तर को

बढ़ा देती है

तुमने तो सुना होगा

सघन वन

कितना वर्षा

करा देती है।



(१०)



सुनहरे वादियों में

जो घूमने जाते हो ना

हरियाली देख तुम्हारा

मन तो हरा हो जाता है

कभी मुझे सूखे

तो कभी हरे कटने पर

उपजे दर्द का कारण

भी तो तुम्ही हो

तुम्हें देखकर तो

मेरा दर्द

और गहरा हो जाता है।




(११)


जीवों को कहां

छोड़ा तुमने

वो बेचारे मेरे

ही घर आंगन में

रेंगते थे,खेलते थे,

दहाड़ते थे,विचरण करते थे

और स्वछंद उड़ते थे

उनका रास्ता अब

शहर की तरफ

मोड़ा तुमने।




(१२)


देखो मेरा सुंदर रूप

तो देखो,देखो गौर से देखो

मुझमें पर्वत पहाड़ घाटियाँ

झरने झील नालें हैं

वन मरुस्थल झाड़ियां

तो खूबसूरत टीलें है

अवलोकन करो

फूलों की खुशबू का

अवलोकन करो

शांत व बहते जल का

अवलोकन करो प्रातः

क्षितिज से निकले उजालो का

देखो रात की भीगी चांदनी को

अवलोकन करो बहती

मन्द शीतल पवनो का

अवलोकन करो आसमान

के बादल का।




(१३)


अब जरा मेरी भी

कुछ बातें सुन लो

मुझे प्रदूषित न करने का

संकल्प बुन लो

वादा करो मुझसे

मेरे नौनिहालों को

तुम काटोगे नहीं

मेरे हरे भरे संसारी चादर को

तुम रेगिस्तानों से

पाटोगे नहीं।




(१४)


और हां मेरे समुचित दोहन

का तुम ध्यान रखना

मुझे बचाकर भावी पीढ़ी का

तुम ख्याल रखना

वरना मेरे साथ ही तुम्हारा

वजूद मिटता नजर आएगा

मेरे शरण मे रहना

मुझसे दूर कहाँ जाएगा।




(१५)


मेरे साए में मानव

तू रहता है

मेरे घरौंदे में मानव

तू बसता है

तू मुझ पर

अतिक्रमण न कर

वरना मैं बदलना

और बदला लेना जानती हूँ

फिर मैं करती अपनी वाली

किसी का न सुनती हूँ

किसी को न मानती हूँ।




(१६)



चाहते हो साफ सुथरा

वातावरण देखना

बन्द करिए कूड़ो को

यत्र तत्र फेंकना

चाहते हो खुशहाल

जिंदगी हो

चाहते हो खुशहाल

बस्ती हो

तो आस पास नियमित

सफाई रखिये

खुले में मत जाइए

इतना तो मेरा लाज

मेरे भाई रखिए।




(१७)

सूखती नदियाँ, बढ़ते मरुस्थल

बढ़ते वृक्ष कटान, घटते जल

सूखे तालाब और जलाशय

समझिए

प्रकृति के सन्देश का आशय

समझिए

विनती है मेरी बात

मेरे महाशय

समझिए।





































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