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जल को ना मिटाओ

जल को ना मिटाओ

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जल को ना मिटाओ

वाह रे इनसान तूने मुझे भी बेच ड़ाला !

वाह रे इनसान तूने मुझे भी बेच ड़ाला !

पवित्र जल को भी दूषित कर ड़ाला,

गंगा-जमना सब पर पेहरा बैठा ड़ाला,

लूट लिया समुद्र को भी,,

सोना चाँदी उसमें से निकाला।

वाह रे इनसान


प्यास बुझाने को बना था मैं मतवाला !

ना किसी की रोक थी मुझपर,

ना था बेड़ियों का ताला,,

जीवन में, मैं भरता था उजाला !

लेकिन तूने मुझे ही अँधेरी कोठरी में बंद कर ड़ाला,,

बोतल में भर मेरा मोल लगा ड़ाला।

वाह रे इनसान


प्रकृति ने मुझे नदी, झील, झरनों में ढ़ाला !

प्रकृति ने मुझे नदी, झील, झरनों में ढ़ाला !

तूने बना दिया मुझे गन्दा नाला,

कहीं कुड़ा, कहीं कचरा बहा ड़ाला,,

मेरे हृदय को छली-छली कर ड़ाला।

वाह रे इनसान


वर्षा कर मैंने जमीन को पाला !

हरे-भरे पेड़-पौधों को उगा ड़ाला,

पर तेरे छल-कपट ने सबकुछ बदल ड़ाला,,

पेड़ों को उखाड़ जमीन को बंजर कर ड़ाला !

इधर रोड़ उधर घर बना ड़ाला,

जल को नालियों का रास्ता दिखा ड़ाला।

वाह रे इनसान


हिमालय से चला था मैं पवित्र प्याला !

तूने काट कर नदियों को मुझे बाँध में भर ड़ाला,

सड़ा-गला, मल-मूत्र,,

सड़ा-गला, मल-मूत्र सब मुझ में ड़ाला !

मेरी पवित्रता को गन्दगी में बदल ड़ाला।

वाह रे इनसान


पशु-पक्षी, जीव-जन्तु सबका था मैं आला !

अपनी गन्दगी धो-धो कर तूने मुझे नीच बना ड़ाला,

उधोगों में मुझे उबाला,,

घरों को मुझसे धो ड़ाला !

फिर भी ना भरा तेरे लालच का प्याला।

वाह रे इनसान


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