बेटी को ना मरवाओ
बेटी को ना मरवाओ
बेटियाँ हैं हम कलियों सी कोमल,
हमें यूँ ना मुरझाओ,
बेटो की चाहत में, हमें ना मरवाओ।
फूल बनकर महकेंगी
हम भी तुम्हारे आंगन में,
एक बार हमें प्यार से तो उगाओ।
बेटियाँ हैं हम कलियों सी कोमल,
हमें यूँ ना मुरझाओ।
देवी बनकर जन्मेंगी तुम्हारे कुल में,
बिना देखे हमारा गर्भपात न कराओ,
देकर मान-सम्मान का हवाला,
हमारा अस्तित्व ही ना मिटाओ।
बेटियाँ है हम..
ना बनेंगी हम तुम पर बोझ,
इतनी कठोरता ना दिखाओ,,
बेटो के समान, हम पर भी
थोड़ा भरोसा जमाओ।
बेटियाँ हैं हम..
बचपन को तुम हमारे लाचार,
मजबूर, बेचारा ना बनाओ,
धेहकती हुई चिंगारी बन जाएँगी हम,,
हमारी हिम्मत तो बढ़ाओ ।
बेटियाँ हैं हम..
जवानी में जब हम
आजमाई जाएँगी,
माँ-बाप का तब अभिमान बन जाएँगी,,
परिवार का सम्मान बढ़ाएँगी।
आँख मिचकर घर की
परम्परा को निभाएँगी।
बेटियाँ हैं हम..
ना देखेंगी धूप,
ना ठण्ड़ से घबराएँगी,,
जब आएगी इज्जत की बात ।
तब हम अग्नी परिक्षा भी पार कर जाएँगी ।।
बेटियाँ हैं हम..
मरते दम तक हम,
माँ-बाप के दायित्व को पूरा करेगी,
कभी उनकी आँखों में आँसू ना भरेगी,
अपने नए जीवन की शुरूआत
उन्हीं की इच्छा से करेगी।
खुशी हो या गम,
हमेशा उनकी प्रसन्नसा करेगी।
बेटियाँ हैं हम..।
तोड़ना पड़ जाए चाहे अपने
दिल को हजार टुकड़ो में,
ड़ोली में बैठेंगी माँ-बाप के
चुने हुए मुखड़े में,
जान की भी हम अपनी बाजी लगाएगी
माँ-बाप का सर गर्व से ऊँचा कर जाएगी।
बेटियाँ हैं हम..
बच्चों को भी हम
अपने ऐसे ही पालेगी,
पत्ति की गरिमा और माँ-बाप के
संस्कारों में ढालेगी,
उन्हीं के दिए हुए आदर्शों से,
अपने परिवार को सम्भालेगी।
बेटियाँ हैं हम...
मरेंगी जब हम ससुराल में होंगी,
पर माँ-बाप की याद हर हाल में होगी,
सारा मौहल्ला दु:खी होकर रोएगा।
जब माँ-बाप का दिया हुआ शरीर,
अग्नि पर शव बनकर सोएगा।
बेटियाँ हैं हम…
