STORYMIRROR

payal Khatik

Abstract

2  

payal Khatik

Abstract

ज़ख्म

ज़ख्म

1 min
155

हर टूटे हुए शीशे को फ़िर से

जुड़ने की दुआ नहीं मिलती है...


वैसे हर जख़्म की फ़िर से

ठीक होने की दवा नहीं मिलती है...


लोगों ने यूँ तो हर जख़्म की

कीमत के बाज़ार सज़ा रखें है..


पर मोहब्बत के किसी भी

जख़्म की दवा नहीं मिलती है!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract