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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Classics

4  

Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Classics

जख्म के निशान

जख्म के निशान

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232


आँसू और मुस्कान

बताते कम हैं

छुपाते ज्यादा हैं


जीभ और नाक

पहचानते जल्दी हैं

बताते देर से हैं


आँख और कान

अनुभूतियों को प्रमाणित करते हैं

अनुमानों को निष्तारित करते हैं


चेहरा बेचारा सोंचता रह जाता

छुपाना क्या, बताना क्या

पढ़ने वाले पढ़ लेते

गढ़ने वाले गढ़ लेते

अनकही कहानियाँ


कोई मन से कहता 

कोई दिल से कहता

कोई होठ से कहता


कभी शब्दार्थ अलग होता

कभी भावार्थ अलग होता

कभी जज्बात अलग होता

कभी अंदाज अलग होता


कभी कभी वो नहीं होता

जिसके लिए सबकुछ होता


अक्सर दब जाता है

खामोशियों का शोर

हो जब बंदिशों का जोर

कभी अपनी , कभी अपनों की


आँखे पीछे नहीं होती

मुड़कर मत देखो 

छलकने लगेंगे मुस्कान से ढके

नयन कोटर में बंद दर्द के निशान

समय की रेत पर नहीं मिटते

अपनो के जख्म के निशान।


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