जख़्म
जख़्म
ये क्या ज़ुल्म मुझ पर हो रहा है
मेरा ये जख़्म हंसकर रो रहा है
देते लोग मुझे पीछे से गालियां,
सामने दामन फूलों का हो रहा है
लोगों की इस मीठी बोली से,
मुझे रोग ब्लड शुगर हो रहा है
ये जख़्म अंदरूनी मेरा साखी,
लोगों के बर्ताव से रो रहा है
कैसे सीखूँ में इनकी कलाकारी
सामने अच्छे,भीतर बगुलायारी
लोगो के बनावटीपन से साखी,
मेरा जख़्म खून के आंसू रो रहा है
फिर भी हमें जिंदगी जीना तो है,
भरी आंखों से आंसू पीना तो है,
मेरा मन, अब निर्विकार हो रहा है
ज़ख्मों के कारीगरों से ये साखी,
ख़ूब ही पढ़ा-लिखा हो रहा है।
