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Anjneet Nijjar

Abstract Others

4.0  

Anjneet Nijjar

Abstract Others

ज़िंदगी को चखा है

ज़िंदगी को चखा है

1 min
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बड़े चाव से,

ज़िंदगी को चखा है,

आँखें खोल और देख,

देखने को कितना कुछ बचा है,

कहीं चटकती हैं अनखिली कलियाँ,

तो कहीं हरियाली घास है,

कहीं बिछड़ता कोई किसी से,

तो कहीं बरसों बाद मिलन की आस है

सुनहरी धूप पसरी धरती पर,

सोने सी चादर बिछी हुई,

कहीं सर्द है मौसम दिलों का,

कहीं बर्फ़ में भी गरमाहट है

पत्ते गिरते हैं झरझर पेड़ों से,

तो फूलों के खिलने की भी आहट है,

बहुत कुछ दिखाती है प्रकृति,

तू बता तुझे किसकी चाहत है

हर मौसम, हर रंग है ज़िंदगी से भरा,

कहीं ज़िंदगी है सरोवर

रंगों से भरी,

मख़मली अहसास और कुछ ख़ास

बहुत कुछ बाक़ी है अभी रखा,

हाँ, बड़े चाव से हमने ज़िंदगी को है चखा….


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