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Pawanesh Thakurathi

Abstract

5.0  

Pawanesh Thakurathi

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जिंदगी की रीत

जिंदगी की रीत

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कहीं पर है नफरत, कहीं पर है प्रीत साथिया

बड़ी अजब-सी है, जिंदगी की रीत साथिया ।


कोई हंसता है, महलों के पीछे

कोई तड़पता है, आसमां के नीचे

कहीं पर जागते हैं, अरमां रात भर

कहीं पर है नींद साथिया।

बड़ी अजब-सी है, जिंदगी की रीत साथिया।


कोई बुनता है, मेहनत के धागे

कोई बढ़ता है, दौलत से आगे

कहीं पर हताशा है घनघोर तो

कहीं पर उम्मीद साथिया।

बड़ी अजब-सी है, जिंदगी की रीत साथिया।


किसी को मिलता है, सारा आसमां

किसी को तिल भर, जमीं भी नहीं

कोई पाता है, धूप की दुनिया

किसी को मुकम्मल रौशनी नहीं

कहीं पर हार है तो,कहीं पर है जीत साथिया।

बड़ी अजब-सी है, जिंदगी की रीत साथिया।


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