जिंदगी की कहानी
जिंदगी की कहानी
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जिंदगी की कहानियाँ भी मज़ेदार हो गई है
पराए से ज़्यादा तो अपने दर्द दे गए हैं
कैसे बताऊँ सब को कि क्या दर्द मिले हैं
मेरा सब कुछ मुझसे ही ले गए हैं।
सोचा था सब ठीक हो जाएगा लेकिन
पता नहीं था उसमें भी मेरा ही नाम आएगा
सोचती हूँ क्यों हर बार मैं ही बुरी बनती हूँ ?
अब तो लगता है क्या सच में बुरी हूँ ?
नहीं सोचना अब किसी के बारे में,
बहुत हो गया सब के बारे में
जीना चाहती हूँ अब खुद के साथ
चाहे अब कोई साथ दे या ना दे..।।