जिंदगी की छांव
जिंदगी की छांव
आज हम हैं क्या पता कल ना होंगे.....
सिमटी हुई यादों के कुछ सिलसिले होंगे.....
आज साथ मिलकर जो हंँसकर जी लिए हंसी लम्हे..
क्या पता कल जिंदगी के फैसले क्या होंगे.....
कितने खौफनाक मंजर देखे यहांँ तबाही के...
टूटते देखे जो हर पल थे तानाशाही के.......
इस कोरोना ने जो किया दुनिया को धराशायी..
पूछे किससे जो ना होंगे देने को गवाही...
दुनिया लगती है जैसे दो दिन का मेला है....
थमती जिंदगी की हर वक्त संध्या वेला है....
कहाँ गए वह दिन कैसा यह है जीवन....
बस में अपने कुछ नहीं कहाँ है हाथ में जीवन....
