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Shishpal Chiniya

Abstract

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Shishpal Chiniya

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जिंदगी खेल नहीं

जिंदगी खेल नहीं

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ऐसे समझो कि , जिंदगी कोई खेल नहीं,

बस गिरफ्त में हैं इसके,  कोई जेल नहीं

खिलवाड़ ही कर लिया है मेंने इसके साथ

जीनी थी ये जिंदगी दीपक की तरह जलकर

देखते ही रह गया, इस दीप में तेल है ही नहीं

महलों में रहकर बादशाह की तरह जीना

इस जिन्दगी ने खुद को गुलाम बना दिया

सुकून से जीऊंगा में ख्वाब का मजाक बन

फुर्सत से पुरे करना चाहा जिन मुकामो को 

जिन्दगी ने उनका नाम बदनाम बना दिया।

शौक जो पाले थे मैंने किसी मोहतरमा के सगं

उलझन ने उनका बिखरा जहाँन बना दिया।

जिनकी वजह से जी रहा था में अब तक यहां

उसी वजह को सिर्फ एक फरमान बना दिया

परिन्दे की तरह आजाद रहना चाहता था मैं

इस जिदंगी ने हर क्षण मुझे गुलाम बना दिया

जरुरतों को पुरी करने की राह ने चुनी जब से

राहगीर को ही तब खुद से अनजान बना दिया

बडी़ रगींन थी मेरी दुनीया इस जहांन मे लेकिन

बसने से पहले ही जरुरतों ने सूनसान बना दिया

वक्त ने जाहील कर ठुकरा दिया मुझे भी अब

हसीन जिदंगी को सिर्फ एक अरमान बना दिया

सोचा था सुकून से जीऊंगा मैं अब अपनो के बीच

घर की जरुरतों ने फिर से मुझे मुसा़फिर बना दिया

ये तो सिर्फ सुना था देखा तो आँखे खोलकर जब

हार की राह को मौत जीत से आसान बना दिया



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