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ARVIND KUMAR SINGH

Abstract Tragedy

4.5  

ARVIND KUMAR SINGH

Abstract Tragedy

जिंदगी के लमहे

जिंदगी के लमहे

1 min
237


पास आऐ कभी इतने

दूर जाते भी रहे

लुभाया जहां उम्र भर

और रुलाते भी रहे

बुलंदियों पर पहुंचा दें

कभी कर दें जमींदोज

खिलवाड़ करते कितना

ये जिंदगी के लमहे


अजीब है दास्तान

बेइंतेहा गम सहने की

मंजिलों के बाद भी

इसी सोच में रहने की

क्‍या पा लिया आखिर

चलने को साथ अपने

क्‍या छोड आये पीछे

ये जिंदगी के लमहे

 

बेइंतहा हैं खूबसूरत 

नेमतें कोई शक नहीं

मर्जी से लूट सके ये

भी किसी का हक नहीं

करने को जोड़ तोड़

दांव लगाते हैं मगर

किस्मत के अधीन हैं

ये जिंदगी के लमहे


लड़ते झगड़ते कटे

कहीं रह गये भटकते

पार करके दरिया भी

कहीं रह गये अटकते

सफर भर है जीवन

मंजिलों की तलाश में

रह गये सफर में ही

ये जिंदगी के लम्हे।


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