STORYMIRROR

Shailaja Bhattad

Tragedy

3  

Shailaja Bhattad

Tragedy

जिंदगी का भार

जिंदगी का भार

1 min
309

दो-दो कल में जीते हैं क्योंकि,

 एक आज में नहीं रहते हैं। 

लंबी यात्रा में विश्वास रखते हैं

लेकिन एक छोटी सी यात्रा भी

पूरी नहीं करते हैं।


अफवाहों में गुथते-गुथाते हैं

अफवाहों का ही भय बनाते हैं।

जीवन की लौ ही नहीं जगाते हैं

फिर बुझने बुझाने का

प्रश्न ही क्यों उठाते हैं।


रूह को कभी सहलाते नहीं

दरवाजे कभी खटखटाते नहीं।

पास तक जाते नहीं

थोड़ा सा भी बुदबुदाते नहीं।

फिर रूठने का गम क्यों करते हैं

माथे पर सिलवटें,

 होठों पर आहें भरते हैं।


मन से मुरझाते तन से झड़ते जाते हैं।

रूखे सूखे इरादों से यूं ही जिंदगी जी जाते हैं

भारी मन से जिंदगी का भार ढो जाते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy