जिम्मेदारी मेरी
जिम्मेदारी मेरी
नितिन आज ऑफिस से जल्दी घर आ गया था। निशा, उसकी पत्नी का फोन आया था कि माँ का फोन आया था। उनकी तबीयत खराब है। शायद दस्त लगे हैं। मैंने नीचे वाले मेडिकल को फोन कर दवाई ऑर्डर कर दी है। और बाजू वाली आंटी को जाकर खिलाने को भी बोल दिया है I मेरी जरूरी मीटिंग है तो क्या तुम प्लीज जल्दी घर चले जाओगे ? उसने हां तो कह दिया था। पर यह सुनकर की दवाई दे दी गई है। वह थोड़ा निश्चिंत हो गया और निशा का वापस से कोई फोन नहीं आया तो वह चार बजे ऑफिस से निकला I घर पहुंच कर अपनी चाबी से दरवाजा खोल कर माँ माँ पुकारता हुआ अंदर गया तो तो देखा मां लेटी हुई थी। पुकारने पर भी आंखें नहीं खोल रही थी। शायद अचेत थी या . . . I डरते डरते नब्ज टटोली। नब्ज तो ठीक थी। शायद दस्त के कारण कमजोरी महसूस कर रही होंगी। या फिर शायद गोली का असर होगा I थोड़ा गालों पर थपथपा कर माँ माँ बोलने पर आंखें खोली और फिर बेसुध हो गई। नितिन सोचने लगा क्या करूं ? डॉक्टर को बुलाँऊ या डॉक्टर के पास लेकर जाँऊ ? उसने सोचा डॉक्टर को ही फोन करके पूछ लेता हूँ। डॉक्टर उसका मित्र था। उन्होंने फोन उठाया। वह कहीं बाहर थे।
बोले अभी ओआरएस का घोल पिलाकर देखो। नहीं तो मैं आधा पौने घंटे में पहुंचता हूँ। नहीं तो फिर क्लीनिक पर लेकर आ जाना l ओआरएस का घोल और दवाई का पत्ता वही टेबल पर ही रखा था। मन ही मन में नितिन ने निशा को थैंक्स बोला। इतनी समझदार पत्नी है उसकी। रसोई से कटोरी चम्मच लाकर उसने थोड़ा सा घोल निकाला और मां को उठाकर बैठाने की कोशिश की। तो यह क्या. . . ? मां तो पूरी गीली थी और बिस्तर भी I शायद अचेतावस्था में मां से बिस्तर व कपड़े खराब हो गए होंगे।
नितिन सोच रहा था अब क्या करूं ? पड़ोस वाली आंटी को बुलाऊँ या निशा के आने का इंतजार करूँ। उसने एक नजर मां के चेहरे पर डाली, अशक्त, दुर्बल, नीरीह..। उसके मन में विचार आया। आंटी को क्यों बुलाना ? या निशा का भी इंतजार क्यों करना ? मां तो मेरी है ना। बचपन में हजारों बार मेरी गंदगी साफ की होगी। फिर बूढ़े और बच्चे बराबर होते हैं। जब मां बेटे के लिए कर सकती है तो एक बेटा अपनी मां का क्यों नहीं कर सकता ? यह जो सामने लेटी है ना वह मेरी मां नहीं है। वह नन्ही सी बेटी है। और एक बेटा ना सही एक बाप अपनी नन्ही सी बेटी के कपड़े तो बदल ही सकता है। वह उठा नीचे मेडिकल वाले को फोन करके एडल्ट डायपर के पैकेट मंगाए I स्नानघर में जाकर गर्म पानी लगाया उसमें डेटॉल डालकर स्पंज तो था नहीं छोटी तौलिया लेकर कमरे में आया। एक दूसरा बिस्तर ठीक किया। माँ को उठाया, उसके सब कपड़े निकालें। उसको अच्छे से पोंछा I माँ तब भी नीमबेहोशी की हालत में थी। माँ को अच्छे से साफ करके पाउडर लगाया। पाउडर लगाते वक्त नितिन मुस्कुराया माँ को पाउडर लगाना कितना अच्छा लगता है। निशा की मैक्सी पहनाई हां उसे और कपड़े पहनाने नहीं आते। तब से मेडिकल वाला डायपर देकर गया। मां को डायपर भी पहना दिया कि अब उनको इस स्थित का सामना वापस से नहीं करना पड़ेगा। धीरे से उनको उठाकर, गले में छोटी तौलिया लगाकर ओआरएस का घोल पिलाया। शायद बार-बार जाने के कारण, पानी की कमी के कारण अशक्त होकर माँ बेसुध हो गयी थी और शायद उनको प्यास भी लगी थी। उन्होंने एक पैकेट धोल पूरा पी लिया। फिर निढाल होकर लेट गई।
उनको अच्छे से लिटा कर नितिन ने सारे कपड़े और चादर को लेकर पहले पानी से धुला फिर मशीन में डाल दिया। गद्दा भी उठाकर धोया, वह तो अच्छा था की पतला स्पंज वाला गद्दा था। बालकनी में सूखने डाल दिया I तब से दरवाजे की घंटी बजी I दरवाजा खोला तो उसकी बेटी गुड़िया और बेटा बंटी स्कूल से वापस आ गए थे। आते ही उन्होंने दादी दादी की पुकार लगाई I नितिन ने उनको समझाया कि दादी की तबीयत खराब है आवाज मत करो। बच्चों को हाथ पैर धोने के लिए भेजकर वह किचन में आया। समय हो ही रहा था, निशा आ ही रही होगी I नितिन ने ढेर सारी अदरक कूटकर चाय का पानी गैस पर चढ़ा दिया। एक कप बिना दूध वाली काली कॉफी बनाकर मां के पास लेकर गया। मां ने आंखें खोल कर उसे देखा। उसने धीरे से सहारा देकर उनको बैठाया और कॉफी पिलाई। तब से बच्चे दादी को घेर कर उनका हालचाल पूछने लगे I वह वापस किचन में गया बच्चों के लिए दूध बनाया, नाश्ता वगैरह निकाला I चाय के पानी में दूध, शक्कर वगैरह सब डाला I बच्चे दूध पी रहे थे कि तब तक निशा भी आ गयी। निशा ने आते ही माँ का हालचाल पूछा l नितिन बोला, "ठीक है, लेटी है, आराम कर रही है" I लो तुम चाय पी लो I बच्चे दूध पी चुके हैं। बाद में निशा ने मशीन में कपड़े और बालकनी पर गद्दा देखकर पूछा तो उसने कहा, "तुमको बता रहा हूं यह बात अपने तक ही रखना Iमाँ को यही लगना चाहिए यह तुमने किया है। मैं मां को शर्मिंदा नहीं देखना चाहता हूँ। निशा ने बोला पर आपने किया ही क्यों ? मैं आकर करती ना। नितिन बोला, "जब मैं कर रहा था तो मुझे लगा ही नहीं कि मैं मां का कर रहा हूँ' मुझे तो यही लग रहा था कि जैसे बचपन में मैं गुड़िया के कपड़े बदलता था वैसे ही बदल रहा हूँ। वैसे भी मां तो मेरी है l तुम करती हो यह अच्छी बात है। पर करना तो मुझे ही चाहिए ना I फिर मां जिसने मुझे पाँच मिनट भी गीले में कभी सोने नहीं दिया उसे कैसे मैं एक घंटा और ऐसे ही गीले बिस्तर पर पड़े रहने देता। कल उसने किया था। आज मेरी बारी थी।
मेरा मानना है कि जिम्मेदारियों को कंधा बदलते रहना चाहिए। जो काम जिसके भी सामने आए उसे कर देना चाहिए। जो जिम्मेदारी जिसके भी सामने पड़े उसे निभा देनी चाहिए I जिम्मेदारी कोई बोझ नहीं है कि किसी एक को ही उठानी पड़े यह तो प्रसाद है जो मिलजुल के बाँट लेना चाहिए।
