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जीवंत कदम

जीवंत कदम

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कुछ कदम जब

मिले शिकस्त से कल ,

हम ने शक नहीं किया

अपने आप पे,


बैठे, सोचे और

फिर बढा दिया एक नया कदम,

और कदमों की आंखें आगे कर दी,


अब आखें सिर्फ़ मंज़िल दिखाएँगी,

पिछला रास्ता ऩहीं,

जो बीत गया,

उससे मेरा अब वास्ता भी नही,


अब चाहे कितने भी गंदे हो जाये कदम,

इनकी धुलाई सिर्फ मेहनत के पसीने से होगी,


इन कदमों को

कभी पैरों का नाम नहीं दूंगा,

मैं अपने कदमों से

दूसरों को पैरों पर खड़ा करूंगा।


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