जीवन
जीवन
दिनकर-ज्योति दीपित करती,
भवसागर में नौका तरती,
नभ-सा हृदय वेदना से जलता,
सुखमय जीवन का स्वप्न है पलता,
दुःख से सघन घन का रोना,
घनीभूत पीड़ा का बिछौना,
व्यथा से मेरी, व्यथित है सागर,
आनन्द-घन से रीति है गागर,
तप्त तवे-से अहसास है मेरे
चतुर्दिक रहते हैं कष्ट घेरे,
धीर-गंभीर पवन का चलना,
प्रतिबिंबित होता निःश्वास का बहना,
प्रकृति गाती अहर्निश रोदन मेरा,
अंधकार में दिखता नहीं सवेरा,
झर-झर निर्झर-से झरते अश्रुकण,
निष्फल ही रहते मेरे श्रमकण,
फिर भी जगत का गान हूँ मैं,
पीड़ा भरी मोहक-सी तान हूँ मैं,
मेरी आभा दिवाकर से है,
अनन्त गहराई रत्नाकर से है,
सोम से पाई मैंने शीतलता,
शबनम सिखलाती मुझे सजलता,
कूलहीन जलधि पर निःशंक,
तैरा देता मैं अपनी नौका,
झंझाओं के उत्ताल झौंको पर,
लहराता मैं अपनी पताका।
मैं जीवटता का अमिट अध्याय हूँ,
तम चीर आती ऊषा का पर्याय हूँ।।
