कलम तोड़ दो
कलम तोड़ दो
हे कलम वीरों! या तो अपना धर्म निभाओ,
या फिर लेखन कर्म छोड़ दो।
सच लिखने की गर नहीं हो हिम्मत,
तो फिर ये कलम तोड़ दो।
लेखन सिर्फ विषय नहीं है श्रृंगार का,
इसमें समावेश हो दहकते अंगार का,
शोषित, पीड़ित, वंचित के आँसू हित,
रुख कलम का मोड़ दो।
सच लिखने की गर नहीं हो हिम्मत,
तो फिर ये कलम तोड़ दो।
बहुत लिख चुके लैला-मजनूं के किस्से,
क्या आया इससे पीड़ित जन के हिस्से?
आँसुओं में डुबो दो आज कलम,
श्रृंगार की स्याही छोड़ दो।
सच लिखने की गर नहीं हो हिम्मत,
तो फिर ये कलम तोड़ दो।
अब परिवर्तन के अंगार लिखो तुम,
अब नहीं माशुका के लिए श्रृंगार लिखो तुम,
वक्त की पुकार सुनकर अब,
जन के सुप्त बंजर मन को गोड़ दो।
सच लिखने की गर नहीं हो हिम्मत,
तो फिर ये कलम तोड़ दो।
कलम को पीड़ित जन की ढाल बनाओ तुम,
भारत माता का उन्नत भाल बनाओ तुम,
राह में आए गर पक्षपात के हिमालय,
कलम की ताकत से उसे फोड़ दो।
सच लिखने की गर नहीं हो हिम्मत,
तो फिर ये कलम तोड़ दो।
कलम हमेशा भ्रातृत्व व समता की पोषक हो,
सद्भाव तथा जन से जन के प्रेम की उद्घोषक हो,
हे कलम वीरों! या तो अपना धर्म निभाओ,
या फिर लेखन कर्म छोड़ दो,
सच लिखने की गर नहीं हो हिम्मत,
तो फिर ये कलम तोड़ दो।