नारी तुम क्या हो ?
नारी तुम क्या हो ?
नारी तुम क्या हो
क्या तुम एक यंत्र हो
या अनथक जीवन का मंत्र हो
हो ठौर सुखमय जीवन का,
या परिभाषा स्वयं जीवन की
सृष्टि का आधार,
असीम प्रेम पारावार,
तुम गरल दुःखों का पी लेती हो,
आह निकालती नहीं,
अधर सी लेती हो,
कहाँ से आती है इतनी सहनशीलता
आँसुओं को पलकों में पी जाने की कला,
धरती-सा तन, आकाश-सा मन,
कहाँ से पाती हो
खुले तराजू के मेंढ़क-से रिश्ते,
कैसे सम्भाल पाती हो
नारी तुम क्या हो
क्या तुम एक यंत्र हो
या अनथक जीवन का मंत्र हो।