STORYMIRROR

जीवन-मृत्यु प्रलय-रचना

जीवन-मृत्यु प्रलय-रचना

1 min
14K


हिमगिरि के उत्तम शिखर पर,

बैठ शिला की ठंडी छाँव,

एक मनुष भीगे नैनों से,

देख रहा था प्रलय प्रवाह !


अशेष-अपार! मृत्यु निरंकार,

ऐसी विपदा आयी कैसे,

तू ही तो है इसका कारणहार,

करता रहा तू प्राणघात !


अब क्यों करे है चीत्कार,

बारी है अब प्रकृति की,

पहले प्रलय बाद में रचना,

स्वतः करे धरती विस्तार !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama