जीवन-मृत्यु प्रलय-रचना
जीवन-मृत्यु प्रलय-रचना
हिमगिरि के उत्तम शिखर पर,
बैठ शिला की ठंडी छाँव,
एक मनुष भीगे नैनों से,
देख रहा था प्रलय प्रवाह !
अशेष-अपार! मृत्यु निरंकार,
ऐसी विपदा आयी कैसे,
तू ही तो है इसका कारणहार,
करता रहा तू प्राणघात !
अब क्यों करे है चीत्कार,
बारी है अब प्रकृति की,
पहले प्रलय बाद में रचना,
स्वतः करे धरती विस्तार !
